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जब उस की तस्वीर बनाया करता था

 जब उस की तस्वीर बनाया करता था 



जब उस की तस्वीर बनाया करता था 


कमरा रंगों से भर जाया करता था 


पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे 


मैं जंगल में पानी लाया करता था 


थक जाता था बादल साया करते करते 


और फिर मैं बादल पे साया करता था 


बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन 


दरिया मुझ से जान छुड़ाया करता था 


बिंत-ए-सहरा रूठा करती थी मुझ से 


मैं सहरा से रेत चुराया करता था

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ 



इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ 


ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ 


अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ 


मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ 


आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख 


मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ 


ख़ुद ही मैं ख़ुद को लिख रहा हूँ ख़त 


और मैं अपना नामा-बर भी हूँ 


दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर 


तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ 


एक फलदार पेड़ हूँ लेकिन 


वक़्त आने पे बे-समर भी हूँ 



तो मेरे साथ कोई हाथ क्यूँ नहीं करता

 तो मेरे साथ कोई हाथ क्यूँ नहीं करता



बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता 


हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता 


महाज़-ए-इश्क़ से कब कौन बच के निकला है 


तू बच गया है तो ख़ैरात क्यूँ नहीं करता 


वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं 


वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता 


मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ 


वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता 


मुझे तू जान से बढ़ कर अज़ीज़ हो गया है 


तो मेरे साथ कोई हाथ क्यूँ नहीं करता 


ये एक बात समझने में रात हो गई है

 ये एक बात समझने में रात हो गई है 



ये एक बात समझने में रात हो गई है 


मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है 


मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा 


मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है 


बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था 


तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है 


बदन में एक तरफ़ दिन तुलूअ' मैं ने किया 


बदन के दूसरे हिस्से में रात हो गई है 


मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर 


ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है 


रहेगा याद मदीने से वापसी का सफ़र 


मैं नज़्म लिखने लगा था कि ना'त हो गई है 

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

 पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा



पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा 


मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा 


अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया 


अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा 


फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन 


मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा 


गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ 


नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा 


मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ 


तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा 


तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुख 


मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा 


मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने 'सरवत' पर 


और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है

 किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है ....




किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है 


कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है 


अजीब दुख है हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैं 


अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है 


मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता 


सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है 


मुझ ऐसे पेड़ों के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी को 


ये बेल शायद किसी मुसीबत में है जो मुझ से लिपट रही है 


ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी 


जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है 


सो इस त'अल्लुक़ में जो ग़लत-फ़हमियाँ थीं अब दूर हो रही हैं 


रुकी हुई गाड़ियों के चलने का वक़्त है धुंध छट रही है 

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया TAHJEEB HAFI

 


तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया

इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ

जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ

उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं

चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने

इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया

बात दरियाओं की सूरज की तेरी है यहाँ

दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस

जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया

TAHJEEB HAFI

SOME MORE OF TAHJEEB HAFI

1.Mujhse milta hai pr jism ki sarhad paar nhi krta

2.EK din mujse bichda or paidal ho gya


दूर हो जाए दिल से वो, जिसे तू तू कहकर छोड़ दे। Tahzeeb Hafi

 दूर हो जाए दिल से वो, जिसे तू तू कहकर छोड़ दे। Tahzeeb Hafi



इश्क़ सबसे ज़िद्दी है, फ़ुर्सत के लम्हों में, जब ख़्वाबों से बहला, दिल में जगह बना ले। बे-वफ़ाई न कर उस से, जो तेरे बिना जी ना पाए, दूर हो जाए दिल से वो, जिसे तू तू कहकर छोड़ दे।

In English:-

Love is the most stubborn of all, in moments of leisure, It bewilders with dreams and takes up space in the heart. Don't be unfaithful to the one who cannot live without you, Distance yourself from the one whom you leave by calling him just "you".



एक दिन वो मुझसे बिछड़ा और मैं पैदल हो गया

एक दिन वो मुझसे बिछड़ा और मैं पैदल हो गया || Tahzeeb hafi




 तपते सहराओं में सब के सर पर आंचल हो गया

उसने जुल्फ़ें खोल दी और मसअला हल हो गया

आंख जैसे तुझको रुखसत कर के पत्थर हो गई
हाथ तेरी छतरियां थामे हुए शल्ल हो गया बादलों में उड़ रहा था मैं वो जब तक साथ था
एक दिन वो मुझसे बिछड़ा और मैं पैदल हो गया ~ तहज़ीब हाफ़ी

चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह

  चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह “चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे हीरे दा कोइ मुल ना जाणे खोटे सिक्के चलदे ...