सुने है कौन मुसीबत कहूं तो किस से कहूं
जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूं
तिरे है दिल में कुदूरत कहूं तो किस से कहूं
न कोहकन है न मजनूं कि थे मिरे हमदर्द
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूं तो किस से कहूं
दिल उस को आप दिया आप ही पशेमाँ हूं
कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहू
कहूं मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत
फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूं
रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूं
जो दोस्त हो तो कहूं तुझ से दोस्ती की बात
तुझे तो मुझ से अदावत कहूं तो किस से कहूं
न मुझ को कहने की ताक़त कहूं तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूं
किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में
'ज़फ़र' मैं अपनी हक़ीक़त कहूं तो किस से कहूं
- बहादुर शाह जफर