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कविता कादम्बरी - मेरे बेटे, कभी इतने ऊँचे मत होना....

 

कविता कादम्बरी - मेरे बेटे, कभी इतने ऊँचे मत होना



मेरे बेटे

कभी इतने ऊँचे मत होना

कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो

उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ


न कभी इतने बुद्धिजीवी

कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग


इतने इज़्ज़तदार भी न होना

कि मुँह के बल गिरो तो आँखें चुराकर उठो


न इतने तमीज़दार ही

कि बड़े लोगों की नाफ़रमानी न कर सको कभी


इतने सभ्य भी मत होना

कि छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा तुम्हें अश्लील लगने लगे

और कंकड़ मारकर उड़ा दो उन्हें बच्चों के सामने से


न इतने सुथरे ही होना

कि मेहनत से कमाए गए कॉलर का मैल छुपाते फिरो महफ़िल में


इतने धार्मिक मत होना

कि ईश्वर को बचाने के लिए इंसान पर उठ जाए तुम्हारा हाथ


न कभी इतने देशभक्त

कि किसी घायल को उठाने को झंडा ज़मीन पर न रख सको


कभी इतने स्थायी मत होना

कि कोई लड़खड़ाए तो अनजाने ही फूट पड़े हँसी


और न कभी इतने भरे-पूरे

कि किसी का प्रेम में बिलखना

और भूख से मर जाना लगने लगे गल्प

हम ने कब चाहा कि वो शख़्स हमारा हो जाए.. yasir khan

 हम ने कब चाहा कि वो शख़्स हमारा हो जाए



हम ने कब चाहा कि वो शख़्स हमारा हो जाए
इतना दिख जाए कि आँखों का गुज़ारा हो जाए

हम जिसे पास बिठा लें वो बिछड़ जाता है
तुम जिसे हाथ लगा दो वो तुम्हारा हो जाए

तुम को लगता है कि तुम जीत गए हो मुझ से
है यही बात तो फिर खेल दोबारा हो जाए

है मोहब्बत भी अजब तर्ज़-ए-तिजारत कि यहाँ
हर दुकाँ-दार ये चाहे कि ख़सारा हो जाए

                                                        -Yasir khan

Wo Sunta To Main Kehta,mujhe Kuch Aur Kehna Tha,

Wo Sunta To Main Kehta,mujhe Kuch Aur Kehna Tha

Wo sunta to main kehta,mujhe kuch aur kehna tha,

wo pal bhar ko jo ruk jata,mujhe kuch aur kehna tha.

kamai zindagi bhar ki,usi k naam to kar di,
mujhe kuch aur karna tha,mujhe kuch aur kehna tha.

kahan us ne suni meri,suni b un-suni kar di,
usay maloom tha itna,mujhe kuch aur kehna tha.

meray dil main jo dar aya,koi mujh main b dar aya,
waheen ik rabta toota,mujhe kuch aur kehna tha.

ghalat fehmi ne baton ko barha dala younhi warna,
kaha kuch tha,wo kuch samjha,mujhe kuch aur kehna tha.

बाते ज्यादा हुई नही,बस आहट ले कर आ गये,


बाते ज्यादा हुई नही

बस आहट ले कर आ गये,

चाय भी ठंडी हो गयी,

गरमाहट ले कर आ गये,

उम्मीद है कुछ पल चुनेगे,

थोड़ी कहेगे ,थोड़ी सुनेगे,

फिर मिलने की हाँ हुई,

छटपटाहट ले कर आ गए...

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता

Gopal das "Neeraj"

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों, चाल बदलकर जाने वालों
चँद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है |
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।

- गोपालदास "नीरज" (Gopaldas Neeraj)


चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह

  चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह “चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे हीरे दा कोइ मुल ना जाणे खोटे सिक्के चलदे ...