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वसीम वरेलवी shayari collection

वसीम वरेलवी shayari collection
उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले 
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले 

किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा 
न जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले 

मैं तुझ से मिलता तो तफ़्सील में नहीं जाता 
मिरी तरफ़ से तिरे दिल में जाने क्या निकले 

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है 
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले 

तमाम शहर की आँखों में सुर्ख़ शो'ले हैं 
'वसीम' घर से अब ऐसे में कोई क्या निकले 

चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह

  चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह “चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे हीरे दा कोइ मुल ना जाणे खोटे सिक्के चलदे ...