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Hindi poem ..चिराग़-ए-दिल बुझाना चाहता था..

चिराग़-ए-दिल बुझाना चाहता था
वो मुझको भूल जाना चाहता था !
मुझे वो छोड़ जाना चाहता था,
मगर कोई बहाना चाहता था !
सफ़ेदी आ गई बालों पे उसके,
वो बाइज़्ज़त घराना चाहता था !
उसे नफ़रत थी अपने आपसे भी,
मगर उसको ज़माना चाहता था !
तमन्ना दिल की जानिब बढ़ रही थी,
परिन्दा आशियाना चाहता था !
बहुत ज़ख्मी थे उसके होंठ लेकिन,
वो बच्चा मुस्कुराना चाहता था !
ज़बाँ ख़ामोश थी उसकी मगर वो,
मुझे वापस बुलाना चाहता था !
जहाँ पर कारख़ाने लग गए हैं,
मैं एक बस्ती बसाना चाहता था !
उधर क़िस्मत में वीरानी लिखी थी,
इधर मैं घर बसाना चाहता था !
वो सब कुछ याद रखना चाहता था,
मैं सब कुछ भूल जाना चाहता था
                                        -मुनव्वर राना

कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती।

Today's poem by one of my favorite hindi Poet 
                     "Harivansh rai bachchan"


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।




डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

--हरिवंशराय बच्चन

चलो फिर से शुरुआत करते है।


चलो फिर से शुरुआत करते है,

जो हो गया उसे हो जाने दो
काल था बीत जाने दो
काली अंधेरी रात बीता कर
नई सुनहरी सुबह की बात करते है,
चलो फिर से शुरुआत करते है।

क्या-क्या खोया क्या-क्या पाया
कितना तुम्हे अपनो ने तड़पाया
सारी पीड़ा पीछे रख कर
एक नया आगाज़ करते है,
चलो फिर से शुरुआत करते है.

मुश्किलो को अब आने दो
तुम अंगद सा पैर जमा दो
कठिनाइयों का अपनी विनाश करते है
नये कल की बात करते है,

चलो फिर से शुरुआत करते है,
चलो शून्य से शुरुआत करते है।
                                                 -VISHAL CHAUHAN


चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह

  चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह “चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे हीरे दा कोइ मुल ना जाणे खोटे सिक्के चलदे ...