अल्लामा इक़बाल (Muhammad Iqbal ): अल्लामा इक़बाल उर्दू के मशहूर शायर हैं. उनकी शायरी में इश्क, मुश्क, जफा आयर वफ़ा के सारे रंग हैं. उन्होंने सारे एहसासों को शायरी में पिरोया है. अल्लामा इक़बाल की पैदाइश पाकिस्तान के पंजाब में हुई थी. अल्लामा इक़बाल की कई शायरियों में जिंदगी और उम्मीदों की झलक भी मिलती है. 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' का जिक्र कीजिए या फिर 'लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी' जोकि राज़ी फिल्म का गाना भी है को अल्लामा इक़बाल ने ही लिखा था. आज हम आपके लिए कविताकोश के साभार से लाए हैं अल्लामा इक़बाल की चंद शायरियां...
1.लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना...
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़इफ़ों से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको.
2.हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा...
ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं
हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं.
3.आता है याद मुझ को गुज़रा हुआ ज़माना...
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें, वो सब का चह-चहाना
आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना.
4.सितारों से आगे जहां और भी हैं...
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़ना'अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दां और भी हैं.
5.तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूं...
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ.
6.दिल से जो बात निकलती है असर रखती है...
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है.