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कविता कादम्बरी - मेरे बेटे, कभी इतने ऊँचे मत होना....

 

कविता कादम्बरी - मेरे बेटे, कभी इतने ऊँचे मत होना



मेरे बेटे

कभी इतने ऊँचे मत होना

कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो

उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ


न कभी इतने बुद्धिजीवी

कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग


इतने इज़्ज़तदार भी न होना

कि मुँह के बल गिरो तो आँखें चुराकर उठो


न इतने तमीज़दार ही

कि बड़े लोगों की नाफ़रमानी न कर सको कभी


इतने सभ्य भी मत होना

कि छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा तुम्हें अश्लील लगने लगे

और कंकड़ मारकर उड़ा दो उन्हें बच्चों के सामने से


न इतने सुथरे ही होना

कि मेहनत से कमाए गए कॉलर का मैल छुपाते फिरो महफ़िल में


इतने धार्मिक मत होना

कि ईश्वर को बचाने के लिए इंसान पर उठ जाए तुम्हारा हाथ


न कभी इतने देशभक्त

कि किसी घायल को उठाने को झंडा ज़मीन पर न रख सको


कभी इतने स्थायी मत होना

कि कोई लड़खड़ाए तो अनजाने ही फूट पड़े हँसी


और न कभी इतने भरे-पूरे

कि किसी का प्रेम में बिलखना

और भूख से मर जाना लगने लगे गल्प

कुत्ते – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

  कुत्ते – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते कि बख़्शा गया जिन को ज़ौक़-ए-गदाई ज़माने की फटकार सरमाया इन का जहाँ भर की धुत्का...