Showing posts with label hindi poems. Show all posts
Showing posts with label hindi poems. Show all posts

Maja hi kuch or hai


Tere hath kaa mere hatho me hone kaa maza hi kuch or hai,
Hamsafar tujhe banane kaa maja hi kuch or hai,
Vese to jee rhe hai yu hi,
Par tere sath jeene kaa maja hi kuch or hai..

Roo kr muskurane kaa maja hi kuch or hai,
Kho kr paane kaa maja hi kuch or hai,
Haar to zindagi kaa hissa hai mere dost,
Haar kr jeet jeene kaa maja hi kuch or hai,

बातो की, बातो ही, बातो में,


  बातो की,बातो ही,बातो में,
  कि अब बात क्या मरे,
  लेके बैठे हैं कलम हाथ मे कि
  अब इस बार उसे क्या लिखें,

  जबाबो की बारिश में वो नहाना नही चाहती,
  तो अब सवालो की बरसात क्या करे,
  कि अब बात क्या करे..

  है यकी इस बार भी,
  मेरे जज्बातो को अल्फ़ाज़ ही समझेगी वो,
  कि होना है बे-इज़्ज़त इस बार भी
  तो अब बात क्या करे..

  अच्छा,सुनो, कैसी हो.?? वगैरह-वगैरह...
  ये सब तो पूछ लिया हैं,
  अब बात दिल की भी लिख दिया करे क्या,
  कि अब बात कर लिया करे क्या.

  बातो की,बातो ही,बातो में,
  कि अब बात क्या करे
  लेके बैठे है कलम हाथ मे कि
  इस बार क्या लिखे।
              -VISHAL CHAUHAN
    

dushyant kumar 5 best poems..

1.मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ 

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ 
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ 
एक जंगल है तेरी आँखों में 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 
तू किसी रेल सी गुज़रती है 
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ 
हर तरफ़ एतराज़ होता है 
मैं अगर रौशनी में आता हूँ 
एक बाज़ू उखड़ गया जब से 
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 
मैं तुझे भूलने की कोशिश में 
आज कितने क़रीब पाता हूँ 
कौन ये फ़ासला निभाएगा 
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ 

- दुष्यंत कुमार      

2.ये ज़बाँ हम से सी नहीं जाती 

ये ज़बाँ हम से सी नहीं जाती 
ज़िंदगी है कि जी नहीं जाती 
इन फ़सीलों में वो दराड़ें हैं 
जिन में बस कर नमी नहीं जाती 
देखिए उस तरफ़ उजाला है 
जिस तरफ़ रौशनी नहीं जाती 
शाम कुछ पेड़ गिर गए वर्ना 
बाम तक चाँदनी नहीं जाती 
एक आदत सी बन गई है तू 
और आदत कभी नहीं जाती 
मय-कशो मय ज़रूरी है लेकिन 
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती 
मुझ को ईसा बना दिया तुम ने 
अब शिकायत भी की नहीं जाती 

- दुष्यंत कुमार

3.वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है 

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है 
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है 
वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तुगू 
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है 
सामान कुछ नहीं है फटे-हाल है मगर 
झोले में उस के पास कोई संविधान है 
उस सर-फिरे को यूँ नहीं बहला सकेंगे आप 
वो आदमी नया है मगर सावधान है 
फिस्ले जो उस जगह तो लुढ़कते चले गए 
हम को पता नहीं था कि इतना ढलान है 
देखे हैं हम ने दौर कई अब ख़बर नहीं 
पावँ तले ज़मीन है या आसमान है 
वो आदमी मिला था मुझे उस की बात से 
ऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है 

- दुष्यंत कुमार

4.कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं 

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं 
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं 
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो 
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं 
वो सलीबों के क़रीब आए तो हम को 
क़ायदे क़ानून समझाने लगे हैं 
एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है 
जिस में तह-ख़ानों से तह-ख़ाने लगे हैं 
मछलियों में खलबली है अब सफ़ीने 
इस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं 
मौलवी से डाँट खा कर अहल-ए-मकतब 
फिर उसी आयात को दोहराने लगे हैं 
अब नई तहज़ीब के पेश-ए-नज़र हम 
आदमी को भून कर खाने लगे हैं 

- दुष्यंत कुमार

5.हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए 
आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी 
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए 
हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में 
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए 
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं 
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए 
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही 
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए 

- दुष्यंत कुमार     

चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह

  चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे~. बुल्लेशाह “चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे हीरे दा कोइ मुल ना जाणे खोटे सिक्के चलदे ...