पिता' के लिए कहे गए शेर...
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
- मेराज फ़ैज़ाबादी
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
- मुनव्वर रानाउन के होने से बख़्त होते हैं
बाप घर के दरख़्त होते हैं
- अज्ञात
मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहा
मैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में
- अज्ञातघर की बुनियादें दीवारें बाम-ओ-दर थे बाबू जी
सब को बाँध के रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
-आलोक श्रीवास्तव
बाप बोझ ढोता था क्या जहेज़ दे पाता
इस लिए वो शहज़ादी आज तक कुँवारी है
- मंज़र भोपालीइन का उठना नहीं है हश्र से कम
घर की दीवार बाप का साया
- अज्ञात
हड्डियाँ बाप की गूदे से हुई हैं ख़ाली
कम से कम अब तो ये बेटे भी कमाने लग जाएँ
- रऊफ़ ख़ैरसुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
- हम्माद नियाज़ी
मैं अपने बाप के सीने से फूल चुनता हूँ
सो जब भी साँस थमी बाग़ में टहल आया
- हम्माद नियाज़ी