बातो की, बातो ही, बातो में,


  बातो की,बातो ही,बातो में,
  कि अब बात क्या मरे,
  लेके बैठे हैं कलम हाथ मे कि
  अब इस बार उसे क्या लिखें,

  जबाबो की बारिश में वो नहाना नही चाहती,
  तो अब सवालो की बरसात क्या करे,
  कि अब बात क्या करे..

  है यकी इस बार भी,
  मेरे जज्बातो को अल्फ़ाज़ ही समझेगी वो,
  कि होना है बे-इज़्ज़त इस बार भी
  तो अब बात क्या करे..

  अच्छा,सुनो, कैसी हो.?? वगैरह-वगैरह...
  ये सब तो पूछ लिया हैं,
  अब बात दिल की भी लिख दिया करे क्या,
  कि अब बात कर लिया करे क्या.

  बातो की,बातो ही,बातो में,
  कि अब बात क्या करे
  लेके बैठे है कलम हाथ मे कि
  इस बार क्या लिखे।
              -VISHAL CHAUHAN
    

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