बहुत अच्छा आदमी था
ये बात तुमने कह दी यकीन से
या अंदाज़े पर
अब कुछ ना कुछ तो कहना बनता था ना
उसके जनाजे पर
नहीं कहते तो जमाने को तुम्हारी अच्छाई पर शक हो जाता
अगर वह सुनता ना तो खुशी के मारे पागल बेशक हो जाता
खैर ये बताओ कि अच्छा ही था तो
अच्छे पन का हिसाब क्यों नहीं दिया
हफ्ते भर से कुछ पूछ तो रहा था ना वो
कभी सवालों का जवाब क्यों नहीं दिया
वो जब पूछता कि मेरी जिंदगी में गमों के सिवा कुछ बाकी रहेगा या नहीं
और फिर तुम हंसकर कह देते कि
यार तू उसके सिवा कुछ और कहेगा या नहीं
काश के हंसी ठहाके सिलसिले को तोड़ कर देखा होता
काश के जितने बार उसे अलविदा कहा
उसी रास्ते पर रुक के पीछे मुड़कर देखा होता
तो जानते कि तुमसे मिलने के बाद वह कभी घर नहीं गया था
उसके चेहरे से नाराज़गी का असर नहीं गया था
वही पेड़ के सहारे सड़क के किनारे बैठ जाया करता था
आते जाते मुसाफिरों से रूठ जाया करता था
तुम जानते थे ना कि वह हम सब से कुछ दिनों से बड़ा अलग अलग सा दूर सा रहता था
पर क्या यह जानते हो कि अकेले पलंग पर लेटे अपने घर में पंखों दीवारों को घूरता रहता था
कहा तो था उसने कि मिलो, मुलाकातें करनी है
जो किसी और से नहीं कहीं वह तुमसे बातें करनी है
और तुम
ऐसे में जिंदगी कैसे जीनी चाहिए ऐसी बातें फर्जी भेज कर दो चार चुटकुलों के साथ हंसी वाला इमोजी भेज कर तुम्हें लगता था कि वह सम्भल जाएगा
सम्भला नहीं तो क्या हुआ
अच्छा आदमी है समझ जाएगा
पर वो तुम्हारी चीजों को पढ़कर सोचता था
कि एक मेरे पास ही हंसने की हसरत क्यों नहीं है
इस जिंदगी में मेरे सिवा ही किसी को मेरी जरूरत क्यों नहीं है
जरूरत है.. काश कि उसे एहसास दिला दिया होता
काश कि उसे एहसास दिला दिया होता
बिना वजह गले लगा कर पास बैठा लिया होता
काश के जानते कि हर रोज वह जानबूझकर बिना कुछ खाएं बेहोश कैसे हो जाता था
काश की समझते क्यों बोलते बोलते खामोश कैसे हो जाता था
काश की उसके लिए ही उससे लड़ लिया होता उसके घर की दीवारों से ज्यादा उसकी उस डायरी को पढ़ लिया होता
तो जानते कि उसकी आंखों में कोई सपना नहीं था
उसके अपने बहुत थे पर उसका कोई अपना नहीं था
काश की हम में से कोई तो उसके घर पर वक्त पर पहुंचा होता
तो उसने उस दवाई की शीशी को खोलने से पहले कुछ तो सोचा होता
-Rakesh Tiwari
No comments:
Post a Comment