तेरी आँखों में जो एक क़तरा छुपा है, मैं हूँ- फ़ौजिया रबाब

 तेरी आँखों में जो एक क़तरा छुपा है, मैं हूँ- फ़ौजिया रबाब



तेरी आँखों में जो एक क़तरा छुपा है, मैं हूँ

जिसने छुप छुप के तेरा दर्द सहा है, मैं हूँ


एक पत्थर के जिसे आँच ना आई तू है

एक आईना के जो टूट चुका है, मैं हूँ


तुझ में डूबी तो मुझे अपनी ख़बर ही कब थी

मैंने यह दूसरे लोगों से सुना है, मैं हूँ


उसने जब भी कहा, "कोई नहीं, शायद अपना"

मैंने बे-साख़्ता हर बार कहा है, मैं हूँ

- फ़ौजिया रबाब



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