मशहूर शायरों की कुछ मशहूर शायरियां
1.मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है- जोश मलीहाबादी
2.बेहतर दिनों की आस लगाते हुए 'हबीब'
हम बेहतरीन दिन भी गँवाते चले गए
- हबीब अमरोहवी
3.जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते
- इबरत मछलीशहरी
4.सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
- निदा फ़ाज़ली
5.दर्द को दिल में जगह दो अकबर
इल्म से शायरी नहीं होती
-अकबर इलाहाबादी
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
- निदा फ़ाज़ली
5.दर्द को दिल में जगह दो अकबर
इल्म से शायरी नहीं होती
-अकबर इलाहाबादी
6.फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं
-दाग़ देहलवी
7.लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं
-दाग़ देहलवी
7.लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
8.मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
9.घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
-क़ैसर-उल जाफ़री
10.लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
हमारे दौर में आँसू ज़बाँ नहीं होता
-वसीम बरेलवी
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
9.घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
-क़ैसर-उल जाफ़री
10.लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
हमारे दौर में आँसू ज़बाँ नहीं होता
-वसीम बरेलवी
11.मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
- दाग़ देहलवी
12.'वसीम' सदियों की आँखों से देखिए मुझ को
वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता
-वसीम बरेलवी
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
- दाग़ देहलवी
12.'वसीम' सदियों की आँखों से देखिए मुझ को
वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता
-वसीम बरेलवी
13.तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
- फ़िराक़ गोरखपुरी
14.ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
- चराग़ हसन हसरत
तुम को देखें कि तुम से बात करें
- फ़िराक़ गोरखपुरी
14.ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
- चराग़ हसन हसरत
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